एफसीआर से नहीं मिली रहिबरी, अधिकारियों व जनता के बीच चर्चा का बना विषय, चारों तरफ हो रही किरकिरी
वैसे तो कुर्सी आनी-जानी चीज़ है, कभी एक को मिलती है तो कभी कोई दूसरी उसके ऊपर बैठता है। सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों के लिए ट्रांसफर होना एक आम बात है। रूटीन में उनके तबादले होते रहते हैं और वह सालों-साल सरकार के आदेशानुसार अपनी नौकरी करते रहते हैं। मगर कई बार कुछ अधिकारियों का किसी एक जगह पर इतना मोह बढ़ जाता है, कि उन्हें लगता है कि उनका तबादला किसी अन्य जगह पर न किया जाए, फिर चाहे इसके लिए कोई भी रास्ता अख्तियार क्यों न करना पड़े।
ऐसा ही एक मामला हाल ही में 31 अगस्त, 2024 को प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश के 12 ज़िला माल अफसरों के साथ-साथ 74 तहसीलदार व नायब तहसीलदारों के तबादले का आदेश जारी किया गया था। जिसमें एक अधिकारी –तहसीलदार जिनकी तैनाती पहले शाहकोट में थी और उनके पास सब-रजिस्ट्रार जालंधर-1 का अतिरिक्त चार्ज भी था, वह अपनी पुरानी मनपसंद सीट से तबादला किए जाने के खिलाफ सीधा हाईकोर्ट पहुंच गए। जहां उनके तबादले के आदेश पर अदालत ने स्टे जारी करते हुए सरकार को नोटिस आफ मोशन भी जारी किया है।
मौजूदा समय के अंदर जहां एक तरफ इस बात को लेकर असमंजस बरकरार है, कि सब-रजिस्ट्रार जालंधर-1 की कुर्सी पर कौन बैठेगा और किसी यहां से औपचारिक विदाई होगी। वहीं दूसरी तरफ यह मामला न केवल पूरे शहर बल्कि पूरे प्रदेश के अधिकारियों के साथ-साथ आम जनता की चर्चा का विषय बन चुका है। जिसके चलते प्रशासन एवं सरकार दोनों की काफी किरकिरी भी हो रही है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार हाईकोर्ट के आदेश का पालन सही ढंग से सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एफसीआर के पास यह मामला भेजा गया है, ताकि वह सभी कानूनी पहलुओं को मदेदनज़र रखते हुए अपनी रहिबरी (निर्णय – राय) दें कि जालंधर के सब-रजिस्ट्रार-1 की कुर्सी पर कौन काम करेगा। जो कि फिल्हाल आई नहीं है, जिसके चलते किसी भी कानूनी अड़चन या पचड़े में न पड़ा जाए, इसलिए दोनों ही अधिकारियों मनिंदर सिंह सिद्दू (जो तबादले के खिलाफ हाईकोर्ट गए) और गुरप्रीत सिंह (जिनका तबादला सरकारी आदेश से यहां हुआ था) को यहां बैठने से मना किया गया है। और तब तक आम जनता के काम का पूरा भार सब-रजिस्ट्रार जालंधर-2 राम चंद को सौंपा गया है।
क्या है मामला किस अधिकारी ने कौन सी वजह से हाईकोर्ट में दायर की है याचिका ?
माननीय हाईकोर्ट में दायर याचिका के अनुसार तहसीलदार मनिंदर सिंह सिद्दू ने भी हाईकोर्ट में इसी आदेश के खिलाफ याचिका दायर करते हुए कहा है, कि पिछले 2 साल के दौरान उनका 10 बार ट्रांसफर किया गया। जबकि एक स्टेशन पर कम से कम 3 साल और अधिक से अधिक 5 साल तक रहने का समय तय है। इतना ही नहीं उनके पूरे कार्यकाल की अवधि में उनके खिलाफ एक भी शिकायत दर्ज नहीं हुई है। वह 57 साल की आयु के हैं और जल्दी ही उनका सेवाकाल भी खत्म होने वाला है। ऐसे में उनका शाहकोट से अहमदगढ़ तबादला किया जाना सरासर गलत है। अदालत ने भी सरकार के 31 अगस्त वाले आदेश पर स्टे जारी करते हुए सरकार को नोटिस जारी कर दिया है।